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PUB USER: savneet

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Savneet
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Singh
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03/19/2009
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I have been a writer and editor on Environment,Science ,Education and human and spirituality since 2003 for various books for children. I hold Masters degree in Environment as well as in Education and currently located in LA,California. I enjoy reading and writing about Environment and life related stuff. I have strong inclination for Spirituality.I practice meditation and yoga everyday.

I am a national scholarship holder in HINDI. I can translate Hindi to English as well as English to hindi.



Titel des Artikels: विवेक और विचार - भारत की आवश्यकता
Erstellungsdatum:
03/19/2009
Aktualisiert am:
03/19/2009
Sprache:
Hindi
Kategorie:
Education
TranslatorPub.Com Rang:
89
Views:
3432
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Text:
हमारे देश विश्व के महानतम देशों की श्रेणी में निसंशय एक महत्वपूर्ण स्थान पर आता है. परन्तु कुछ बातें हैं जिनके कारण भारत अन्य विकसित देशों से पीछे है. उनमे से एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारण है कि प्रतीभा रूपी ज़मीन सालों से बंजर पड़ी है. इसका कारण है इसमे नवीनतम विचार रूपी बीजों की अनुपस्थिति . भारत को आज जिस चीज़ की सबसे अधिक आवश्कता है , वह है, विचारों की क्रांति. हम अधिकतर भारतीय विचार करने का श्रम नही करते. जो पुरखों ने कहा बस मान लिया, बिना विचार किए.
हम जानते है कि संदेह होने कि स्थिति में विचार उत्पन्न होते है. यदि विचार होंगे तो हम प्रयोग करके देखेंगे कि जो विचार किया गया है वह सत्य है या असत्य है. अर्थात यदि हम विचार करने का श्रम करेंगे तो सत्य के निकट पहुंचेगे .ध्यान रहे सत्य ही परमात्मा तक पहुंचने का साधन है. अब यह सत्य तक पहुंचने के लिए श्रम की, कार्य करने की प्रेरणा विचारों से मिलती है हमें याद रखना चाहिए कि विज्ञान तथा दार्शिनिकी का जन्म मस्तिषिक में उपजे विचारों , सवालो तथा संदेहों के कारण ही हुआ है.
सत्य, जिसकी खोज हमने स्वयं अपने विवेक की है वह हमें पुरुषार्थ कि ओर ले जाता है. यह हमें भविष्य में विकास की नई उंचाई तक ले जाता है. इन उंचाईओं को हम श्रम द्वारा ही पा सकते है। हमें अपने मस्तिष्क , सोचने समझने की शक्ति का प्रयोग करना पढता है. केवल पूंछ पकड़ कर पीछे चलने वाले सत्य को नही पा सकते। आँखों पर विश्वास , अन्धविश्वास की पट्टी बांधकर हम दूसरों द्वारा का अनुगमन करने से सत्य की प्राप्ति नही कर सकते . अपनी बुधि का उपयोग, अपने विवेक का उपयोग करने पर ही हम दूसरों की कही बात पर संदेह करना सीखेंगे , विचार करना सीखेंगें , शिक्षक विद्लयों में कहते है " जैसा कहा जाता है वैसा करो ". "जो हमने कहा वह मानो"।

घर में भी बच्चों को बचपन से यही शिक्षा दी जाती है , ऐसा कहकर हम उनकी बुधि को पंगु बना देते है और धीरे धीरे उसपर ज़ंग लगना शुरू हो जाता है. केवल आयु में बड़ा होना सही होने की कसौटी नही है. सत्य की कसौटी है विचार करना , तर्क करना , प्रयोग करना, परन्तु यहाँ एक महत्वपूर्ण बात यह है कि पुरखों , बड़ों की अवमानना एवं अनादर करना तर्क करने से एकदम भिन्न है।

विचार करने से ही विवेक का जन्म होता है और यह विवेक हमें अपने जीवन के उतरदायित्व का निर्वाह करने में मदद करता है. किसी और के विवेक से फैसले लेने से अच्छा नही है कि हम अपने आप विचार करके , अंपने विवेक से काम ले और यदि ऐसा करते समय गलती हो भी जाए तो कम से कम हम यह जान सकें कि कमी कहाँ थी?

यह विचार न करने, संदेह न करने की ,प्रयोग न करने की प्रकृति के कारण ही भारतीय पुरुषार्थ के मार्ग खोकर भाग्यवादी बन कर ही रह गए है .श्रम का मार्ग छोड़कर, धर्म या किसी धर्मगुरु अथवा किसी सत्ताधारी के पीछे आँख बंद करके चलने से सत्य की प्राप्ति नहीं होगी.
उमर ख्याम की पंक्तियाँ द्वारा यह बात सिद्ध होती है:
प्रिये, आ बैठ मेरे पास ,
सुनो मत क्या कहते विद्वान ,
यहाँ निश्चित केवल यह बात
कि होता जीवन बस अपने हाथ।
--सवनीत "क्रांति संभव"

http://blog4future.blogspot.com/2008/07/blog-post_29.html
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